आँखें आँखों में देख रही
पलकें गिरने से रोक रही ।
इक टक नज़रें ये रुकी पड़ी
मनु नीर बिना जब मीन पड़ी।।
सांसें साँसों को भेद रहीं
आहे आहों से भेंट रहीं।
बाहें बाहों में डोल रहीं,
बढ़ती धड़कन दिल रोक रहीं ।।
बहती मधु मस्त मंद बयार
डोले कच, कुंडल, स्वर्ण हार।
उलझे कर उसके अलकों में
थिरके मन उसके पलकों में।।
बहता रस सोम नयन से यों
पीता मन मृदुल व्याकुल यों ।
गिरता जल हो व्योम से ज्यों
धरती की प्यास बुझाता ज्यों ।।
लाल ओंठ पास अब आते
मधुर-मधुर मिठास जब लाते ।
तब ये नजर शरम सी जाती
पलकें थोड़ी सी झुक जाती ।।
और पास जब दिल आ जाते
बढ़ती धड़कन और बढ़ाते।
एकत्व भाव जागृत हो जाते
आत्म विलीन साधक बन जाते।।
No comments:
Post a Comment