आंखों में कोई नींद नहीं है
फिर भी बंद किये हुये है।
सारी रात पलक नही झपकी
सोयी हुयी मुरझाई पड़ी है।।
कभी कभी उठ जाती है फिर
सहला लेती अपनी बेटी को।
भर आते ममता के आँसू
बह जाते जल की धारा से।।
कौन कहे किससे वो बोले
ये आँसू ऐसे ही जायेंगे।
कल से आँगन हो जाएगा सूना
ये पंक्षी भी इसे याद करेंगे।।
सीधी साधी भोली सी बेटी
दर्द नही सह पायेगी ये।
कैसे रह पायेगी बिन मेरे
ये अंखिया भर आती है फिर से।।
फूट पड़ी चाहत की ममता
फिर भी नहीं बताती उसको।
कहीं जाग न जाये बेटी।
आज यहां सोने दो इसको।।
छलक पड़ी ममता की अंखिया
घिरने लगे मेघ सावन के।
बूंद एक छलकी अँखियों से
गिर जाती अलकों पर उसके।।
वो भी स्वयं नही सोयी थी
बस डूबी हुई थी एक सोच में।
कैसे में मां को समझाऊं
जीवन का हर कोना ऐसा।।
कभी धूप तो कभी छाँव है
कभी स्वयं दुख सुख बन जाता।
कभी खुशी बन जाती गम में
कभी नीर भी हिम बन जाता।।
यही चक्र है, यही चरण है
ये जीवन अनमोल रतन है।
सुख-दुःख तो मन का भ्रम है
इस भ्रम में क्यों मानव का भ्रमण है।।
ये मां-बेटी भी बिन बोले
चाहत की वाणी से बोल रहे है।
कैसे कोई समझ पायेगा
ये अपने मे ही डूब रहे है।।
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