सूक्ष्म विज्ञान की परिकल्पना

पुरूष (आत्मा-soul) is like nucleus of an atom. Concept of ‘चित’ (i.e. चेतना का मूल) just seems like ‘mass’ of particle and चेतना is like gravity. soul's one of basic property is ‘having चेतना’. It is considered as ‘sun’, dispersing light (चेतना रूपी प्रकाश) all over body,
Which is making सूक्ष्म शरीर( मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ etc,) living and it is considered as ‘जीव’।
We may think of जीव as an atom having orbits (in inner space, सूक्ष्म शरीर) in which मन, बुद्धि, इंद्रियाँ are like electrons. These elements (तत्व in सांख्य योग) are having चेतनता from soul.

प्रकृति is an association of three गुण (सत, रज, तम). These seems like association of three perpendicular fields like electro-magnetic fields. Each element (मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ, etc) can be affected by this.

‘काम’ seems like ‘charge’ (आवेश) over particle.
It can reside over मन, बुद्धि and इंद्रियाँ. (गीता#3.40)

क्षेत्र की विकृतिया(गीता #13) also seems like different charges.


प्रकृति और पुरुष


प्रकृति और पुरुष, ये दोनों से यह चराचर संसार है।
पुरुष सभी भावों को महसूस करता है।
संसार की सभी अनुभूतियाँ (गन्ध, रस, भाव, सुख etc) इस पुरुष को प्रकृति के संग होती है।
यह पुरुष ही तो आत्मा है। प्रकृति 3 गुणों (सत, रज, तम) (like electro magnetic fields) का समन्वय है। जब पुरुष प्रकृति के संपर्क में आता है तो अन्य तत्व प्रकट होते है। इस प्रकार :
प्रकृति (अव्यक्त) से बुद्धि, इससे अंहकार, इससे 10 इन्द्रियाँ, मन(चित्त), 5 महाभूत, 5 विषय(तन्मात्राएं) उत्पन्न होते है। और यही इस पुरुष को जीव की संज्ञा दे देते हैं।

पुरुष चेतन स्वरूप है और चेतनता रूपी प्रकाश से प्रकृति जनित तत्वों को चेतनता देता है, जो अनुभूति (ज्ञान, अर्थ, काम आदि से उत्पन्न सुख इत्यादि का अनुभव) क्षणिक रूप में आत्मा में बाह जगत से महसूस होती है किन्तु वह सब तो आत्मा में जानने से स्वत: ही  हो जाती है।


भोक्ता पुरुष है, जबकि कर्ता, करण प्रकृति है।
आत्मा का पहला आवरण अंहकार का होता है, उसके बाद बुद्धि, फिर मन और फिर इन्द्रियाँ तब स्थूल शरीर होती है।

जब मैं था, तब हरि नही, अब हरि है में नाहिं।

अंहकार मैं का स्वरूप है, इससे अहम भाव महसूस होता है।



No comments:

Post a Comment