तुम गुणबंती बन कर रहती हो, मैं अवगुण का भंडार बना।
तुम पायल राग बजाती हो, मैं ढोलक ताल मजीरा हूं।
तुम काम सरीखा करती हो, मैं टांग अड़ाते रहता हूं।
तुम सुंदर व्यापक रचना हो, मैं मोटा पेट तबेला हूं।।
तुम ब्रह्मचर्य की देवी हो, मैं कामुक पुरुष अधेड़ा हूं।
तुम चमक चांदनी लगती हो, मैं आलस से भरपूर भरा।
तुम जो भी कदम उठाती हो, तुम सत्य बाहिनी रहती हो।
मैं कभी नही कुछ करता हूं, पर गलत सिद्ध हो जाता हूं।
तुम सुबह सबेरे उठती हो, मैं चैन की नींद में सोता हूं।
तुम जल्द तैयारी कर लेती, मैं लेट लतीफा कारक हूं।
तुम door lock कर देती हो, मैं खोई इसकी चाबी हूं।
तुम साफ वाशरूम करती हो, मैं फैला इस पर नीर प्रिये।
तुम शांत भाव में रहती हो, मैं noise pollution धारक हूं।
तुम सुंदर भजन सुनाती हो, मैं इसमे कोई डकार लिये।
यह अमल विमल सी जोड़ी है, यह दिशा निशा की घोड़ी है।
यह दोनो बिना अधूरी है, यह शुद्ध प्यार की डोरी है।।